Wednesday 21 September 2011

जीवन जीना एक कला है


जीवन जीना एक कला है

जीवन   जीना   एक   कला   है,
मन  उजला  तो, जग उजला है।
इस  जीवन  में  कदम-कदम पर,
मन  की   रोज   परीक्षा   होती।
लेखा - जोखा   होता  पल - पल,
जिसकी    रोज   समीक्षा  होती।
निर्मल  मन  हो, निर्मल  तन हो,
निर्मल  धन  हो, जो  भी   आये।
जीवन  अपना  धन्य  समझ  लो,
जीवन  यदि   निर्मल  हो  जाये।
करो   समर्पित  जीवन   अपना,
जो  भी  तुमको  काम  मिला है।
संयम,   निष्ठाशुद्ध - कर्म   ही, 
जीवन   की  आधार - शिला  है।
जो   तुम  दोगेवही   मिलेगा,
सुख  दोगे   तोसुख   पाओगे।
बात   बहुत  सीधी  हैलेकिन,
क्या  तुम   इसे   समझ पाओगे।
यह   जीवन  अनमोल  रतन  है,
एक   बार   मुश्किल  से   पाया।
दिव्य - शक्ति  के  हो  जाओ तुम,
छोड़ो   जग   की  मिथ्या-माया।
अन्तहीन       इच्छायें      होतीं, 
कब  तक  इसका  भ्रम  पालोगे।
मन  की   चंचल  चाल  निराली,
क्या   तुम   इसे  पकड़   पाओगे।
वशीभूत   मन    के   मत   होना,
कहती   यह   भगवत   गीता  है।
निज   विवेक  सद-बुध्दि जगाओ,
मन   जीता   तो   जग  जीता  है।
मानव - तन   मन्दिर  है   पावन,
मन - वीणा   झंकृत   कर  डालो।
रोम - रोम  पुलकित   हो   जाये,
दिव्य - प्रेम  की ज्योति जगा लो।
ढाई   गज  का  वस्त्र  पहन   कर,
ढाई   किलो   की   राख   बनेगा।
ढाई   आखर   प्रेम   में   रम  जा, 
मानव   तन  कब   और  मिलेगा।

                                      ....
आनन्द विश्वास  

                                                     

2 comments:

  1. दिव्य - शक्ति के हो जाओ तुम,
    छोड़ो जग की मिथ्या - माया.

    वशीभूत मन के मत होना,
    कहती यह भगवत गीता है.


    अति सुन्दर ||

    बधाई |

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  2. वशीभूत मन के मत होना,
    कहती यह भगवत गीता है.
    निज विवेक सद-बुध्दि जगाओ,
    मन जीता तो जग जीता है.....

    संक्षेप में जीवन जीने की कला सिखा दी आपने...आभार।

    .

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